शुक्रवार, 30 मार्च 2012

नवरात्रे का कुण्डलिनि जागरन विषयक महत्व - नवदेवियुन और साधन विषयक महात्वपुर्न बात




नौ अवतार

मां दुर्गा के नौ रुप हिंदू धर्म शास्त्र में माने गए हैं।

शैलपुत्री (मूलाधार चक्र)

नवरात्र का पहला दिन शैलपुत्री की उपासना का माना जाता है। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। पूर्व काल में इनका जन्म दक्षकन्या सती के रूप में हुआ था और शिव से इनका विवाह हुआ था। शैल पुत्री के रूप में इन्हें पार्वती या उमा भी कहा जाता है।

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरां।

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीं॥

ब्रह्मचारिणी (स्वाधिष्ठान चक्र)

ब्रह्मा का अर्थ है तपस्या। तप का आचरण करने वाली मां भगवती को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। यह दुर्गा का दूसरा रूप है। इस स्वरूप की उपासना से तप, त्याग, सदाचार, वैराग्य तथा संयम की वृद्धि होती है।

दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

चन्द्रघण्टा (मणिपुर चक्र)

मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम ‘चन्द्रघंटा’ है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह की उपासना की जाती है। इनका यह रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनकी कृपा से समस्त पाप और बाधाएं विनष्ट हो जाती हैं।

पिण्डजप्रवरारूढा चन्दकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्मं चन्द्रघण्देति विश्रुता॥

कूष्माण्डा (अनाहत चक्र)

मां दुर्गा की चौथी शक्ति का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद हंसी से ब्रह्माण को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा कहा जाता है। यह सृष्टि की आद्य-शक्ति है। मां कूष्माण्डा के स्वरूप को ध्यान में रखकर आराधना करने से समस्त रोग और शोक नष्ट हो जाते हैं।

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
स्कन्दमाता (विशुद्ध चक्र)

शिव पुत्र कार्तिकेय (स्कंद) की जननी होने के कारण दुर्गा की पांचवीं शक्ति को स्कंदमाता कहा जाता है। मां स्कंदमाता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। सूर्यमण्डल की अधिष्ठात्री देवी होने से, इसका उपासक अलौकिक तेज और कांति से संपन्न हो जाता है।

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

कात्यायनी (आज्ञाचक्र)

माता दुर्गा के छटे स्वरूप का नाम कात्यायनी देवी है। महर्षि कात्यायन के घर पुत्री के रूप में जन्म देने पर इनका यह नाम पड़ा। इन्होंने ही देवी अंबा के रूप में महिषासुर का वध किया था। मां कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को सरलता से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी॥

कालरात्रि (भानु चक्र)

माता दुर्गा की सातवीं शक्ति ‘कालरात्रि’ के नाम से जानी जाती है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में भयानक है, परंतु सदैव शुभ फल देने वाला है। इसी कारण इन्हें शुभंकरी भी कहते हैं। इसके स्वरूप को अग्नि, जल, वायु, जंतु, शत्रु, रात्रि और भूत-प्रेम का भय नहीं सताता।

एकवेणी जपाकर्णपूर नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥

वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।

वर्धनमुर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
महागौरी (सोमचक्र)
मां दुर्गा की आठवीं शक्ति ‘महागौरी’ कहलाती है। इन्होंने पार्वती के रूप में भगवान शिव का वरण किया था। इनकी शक्ति अमोघ और शीघ्र फलदायिनी है। इनकी भक्ति से भक्त के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

श्र्वेते वृषे समारूढा श्र्वेताम्बरधरा शुचिः।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥
सिद्धिदात्री (निर्वाण चक्र)

मां दुर्गा का नवम स्वरूप भगवती ‘सिद्धियात्री’ है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। देवी पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने इनकी आराधना कर आठों सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन्हीं की कृपा से भगवान शिव का लोक में ‘अर्द्धनारीश्वर’ स्वरूप प्रसिद्ध हुआ था।

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धीदा सिद्धीदायिनी॥
 

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ